।।खुशियों का संगम दूर न हो।।
स्निग्ध समीर बिन आहट घर,
आकर हौले-हौले मुस्काये।
विकसित प्रसून के मधुकण से,
घर का हर कोना महकाये।।
रवि की सुनहली किरणें हर क्षण,
पड़ तन पर मध्धम सहलाये।
मलयज सा यश विस्तारित हो,
ईश्वर की ऐसी कृपा हो सब पर।।
मधुमास बने जीवन सबका,
खुशियां अलिंद में व्याप्त रहे।
कोना-कोना हो अधर विहीन,
औ अजा सदा सजीव रहे।।
मानवता का हो सम्प्रेषण,
प्रेम यहां विस्तारित हो।
ध्वंसित हो मानवता अकस,
प्रगति का द्योतक अमिट रहे।।
एक नूतन वर्ष ही नहीं प्यारे,
ये प्रकृया रहे हर घड़ी यहां।
हम रहें नहीं, तो नहीं सही,
खुशियों का संगम दूर न हो।।
नोट-
अधर= शान्ति,
अजा= प्रकृति अथवा आदि शक्ति,
अकस= मन में होने वाला दुर्भाव।
🙏🙏🙏🙏🙏
।। प्रदीप कुमार तिवारी।।
करौंदी कला, सुलतानपुर
7978869045