अवधी गीत
पीली चदरिया ओढ़े सरसो दिवानी ।
हरियर हरियर गेंहूँ उपजा ,खेत खेत हरियाये ।
हवा करै बालों मे कंघी ,खेतन का दुलराये ।
गजरा, मुनमुन, गोंहूँ मामा ,बिन बोये जो उपजे,
रामखेलावन घसियारी मा बैठा खेत निराये ।
छोटका लरिकवा लावा दुपहर मा पानी ।
पीली चदरिया……………………………..
मसुरी मटर अबहि लरिका हैं,अरहर भई किशोरी।
बथुई कला कला यों बाढ़ै, ज्यों गरीब की छोरी ।
सात हाथ तक बाढ़ा गन्ना ,चला गवा कोल्हू पर ,
कोल्हू पर कराह उतरै,गुड़ महकै चारो ओरी ।
पहिला कराहा, सुमिरै भुइयाँ भवानी ।
पीली …………………………………
बड़की काकी चना केर, उँय घोटुवा साग बनावैं ।
हींग डारि कै सगपहिता मा सारा घर महकावैं ।
लरिकन केर हाल न पूछौ ,उनकी तौ चाँदी है,
बड़ेन सबेरे कौरा पैहाँ साग भात गरमावैं ।
बीनै चना औ बथुई गीतों की रानी ।
पीली……………………………………
—–डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी