गज़ल
अजीब नशा मुझी पर मुख्तसर गया
देखा कहीं अजीब शक्ल रात डर गया
हर ले नक़्श तमन्ना का हो गया लगा
धुंधला सा था ज़ख्म मेरे दिल का भर गया
जीवन बना दूभर जो पाया असर नया
मैं महकशीं से अपने ही साये से मर गया
ये सोच जब सफर फाके ही कटा गया
जब शजर ने पुकारा तो बस ठहर गया
वो गुज़र सा ज़माना वो ज़ख़्म भर गया
जो सफ़र भी तमाम हुआ नगर गया
हमारी राह में साया कहीं नहीं था मगर
किसी शजर ने पुकारा तो गम ठहर भी गया
ज़िन्दगी से मेरी तू इस तरह चला गया
मैं बेख़ुदी में अपने ही साये से डर गया
— रेखा मोहन २७/१२/२०१७