लघुकथा – नूतन वर्ष नई उम्मीदें
नूतन वर्ष की नई उम्मीदें रश्मि की दुर्घटना से मिली चोटों को सहते से मन में जागृत हो रहीं थी| दबाई देते जब से उसकी बहू मंजरी ने जिक्र किया, “हमें नव्या का विवाह कर देना चाहिए| अब डाक्टरी पूरी हो नौकरी लग गई है| हमारे घर में भी विवाह की शहनाईयाँ बजें और हमारा परिवार पूरा हो जाए| हमारी नन्द नव्या सजी-धजी दुल्हन बन अपने घर में नयापन और खुशियाँ बिखेरती घुमे|” हम तो नूतन वर्ष में यही सौगात चाहते हैं| रश्मि कुछ सोचती सी बोली, “हाँ, अगर काबिल लड़का मिल जाये| बेटी सुंदर, सुशील, व व्यवसायी है| बस प्रभु की कृपा बनी रही तो इस वर्ष में शुभ कारज़ जरूर होगा|” रश्मि मन के गलियारों में गौते लगा बहू के देखे सपनो में रंग भरना चाहती थी| लड़का देखने की तलाश में हो गई थी| रश्मि रोज़ हाथ जोड़ प्रभु से अपने परिवार की खुशी मांगती| रश्मि पति को भी नये वर्ष में नई आशाओं और सपनों को लेकर जीने के लिये प्रेरित करती, कहीं दूर सपनों को हकीकत बनाने में खो जाती| तभी दर्द से करवट बदलतें जोंर से प्रभात–फेरी गुरु गोबिंद सिंह के जन्मदिवस उपलक्ष्य में संगतो के ढोल-चिमटे की आवाजों ने रश्मि को सपने से जगा दिया| हाथ जोड़े रश्मि सच्चे पातशाह से प्रभु गुणगान करती घर की खुशी मांगती सोच रही थी “सर्व-सुख स्वप्न हो”|
— रेखा मोहन २६/१२/२०१७