अनुशासन
अनुशासन में बंधे हुए हैं,
ग्रह-उपग्रह और सब तारे,
अनुशासन की सीमा में हैं,
बंधे हुए जड़-चेतन सारे.
अगर समय से सूर्य न निकले,
दूर न होगा अंधियारा,
कैसे जीवन मिले जगत को,
कैसे हो फिर उजियारा!
अगर समय पर चांद न निकले,
शीतलता न मिलेगी,
चारु चंद्र की चंचल किरणें,
फिर कैसे सुख देंगी?
एक नियम से घूम रही है,
धरती प्यारी-प्यारी,
तभी टिके हम एक जगह पर,
टलती उलझन भारी.
वृक्षों से फल नीचे गिरते,
कभी न ऊपर जाते,
विद्या पाकर गुणी पुरुष हैं,
और नम्र हो जाते.
यह है अनुशासन की महिमा,
भुला इसे मत देना,
इससे शिक्षा लेकर अपना,
जन्म सफल कर लेना.
आदरणीय बहनजी ! अति सुंदर प्रेरक व शिक्षाप्रद रचना के लिए आपका हृदय से आभार ! अनुशासन की डोर से समस्त ब्रम्हांड के सजीव व निर्जीव भी बंधे हुए हैं । सृष्टि के पल भर के अनुशासनहीनता की कीमत लोगों को वर्षों तक चुकानी होती है जैसे अति वर्षा , भूकंप या अकाल की त्रासदी । सृष्टि के नियमों का पालन करते हुए यदि हम भी अनुशासित हो जाएं तो इन विभीषिकाओं से बचा जा सकता है । पुनः अति सुंदर रचना के लिए आभार !
प्रिय राजकुमार भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको रचना बहुत सुंदर लगी. हमेशा की तरह आपकी लाजवाब टिप्पणी ने इस ब्लॉग की गरिमा में चार चांद लगा दिये हैं. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
अनुशासन वह डोर है, जो हमें सफलता की ऊँचाइयों को छूने में मदद करती है. जैसे डोर के बिना पतंग नीचे गिर जाती है, वैसे हीं अनुशासन के बिना हम असफल हो जाते हैं.