मैं श्वान हूँ
रोटी के टुकड़ों पर मेरा जीवन चलता,
कभी-कभी तो मुझको जूठन ही मिलता।
स्वामी कदमों पर लेकिन न्योक्षावर रहता,
मैं रक्षक हूं, मैं सेवक हूं, सेवा में ही रहता।।
पूस रात में कभी किसान बांहों में भर लेता,
हल्की आहट खेतों में, आगे है कर देता।
मैं भी दौंडू, शोर मचाऊं, धमकाऊं कौन है बे,
वापस आने पर मालिक पुचकार हमें है देता।।
मैं श्वान हूं, मालिक मुझको प्यार से शेरू कहता,
उसकी खुशियों के खातिर दिन रात कुलांचे भरता।
पहरेदार हूं खेतों का मैं बंगलों में भी रहता,
तृप्त वहां खाकर होता, स्वच्छंद नहीं पर रहता।।
सेवा भाव रहा है मेरा, स्वार्थ नहीं मैं करता,
पर नेताओं से तुलना हर कोई क्यों करता।
नेता हैं निर्लज्ज बड़े, स्वजन खून को पीते,
अधम, नीच, पापी तुलना से मन मेरा है जलता।।
पहरेदार मैं स्वामी का, सेवा से बतलाता,
सूखी, जूठन या कलेवा से भी काम चलाता।
जो किसान के शत्रु उन्हें खेतों से दूर रपटता,
मैं श्वान स्वामी सेवा में तत्पर हर पल रहता।
🙏🙏🙏🙏🙏
।। प्रदीप कुमार तिवारी।।
करौंदी कला, सुलतानपुर
7978869045