आबाद
आज से पंद्रह साल पहले वीरेन सुनंदा से कहना चाहता था-
”चल तुझे दिखा दूं अपने दिल की वीरान गलियां
शायद तुझे तरस आ जाए मेरी उदास ज़िंदगी पर.”
लेकिन कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाया था. ऐसा भी नहीं था, कि सुनंदा समझती नहीं थी, वह भी अनजान बनी रही. जानती थी, वीरेन बहुत पढ़ा-लिखा और कविता-शायरी में एक जाना-माना हस्ताक्षर था और पढ़ाई-लिखाई के नाम पर सुनंदा बस अपना नाम भर लिख पाती थी. हां, शेरो-शायरी की समझ उसे किसी भी शायर या शायरी के दीवानों से कम नहीं थी. शायरी की महफ़िल में ही वीरेन की उससे मुलाकात हुई थी, जब किसी मंझी हुई शायरी की दीवानी की तरह सुनंदा ने उससे ऑटोग्राफ लिए थे. शायर का नाम पता होने के कारण उसने वीरेन के नाम की वर्तनी को लिखने का अभ्यास भी कर लिया था. समुद्र-किनारे मिलते समय किनारे की रेत पर उसने वीरेन का नाम लिखकर उसको गुपचुप प्यार का विश्वास भी दिला दिया था. फिर वीरेन का तबादला दूसरे शहर में हो गया. सुनंदा ने उससे प्रतीक्षा करने का वादा कर लिया था. वीरेन की तो एक पत्नि पहले से ही थी, वह उसी की दुनिया में खो गया था. किसी और की सुध भला उसे कहां थी? उसकी शायरी की पंद्रह किताबें छप चुकी थीं, लेकिन पत्नि ने किनारा कर लिया था. आज उसे पुराने शहर से महफ़िल का निमंत्रण आया और उसी के साथ याद आ गई सुनंदा की. ”क्या वह अब तक प्रतीक्षा कर रही होगी?” मन ने पूछा.
”क्यों नहीं! तुम्हारी तो एक अलग दुनिया है, उसकी महफ़िल तो वीरान है न!” शायद यह सुनंदा के मन की आवाज़ थी.
”विश्वास तो नहीं होता, शायद भूल मेरी तरफ से ही रह गई थी.” मन ने माना ”हो सके तो भूल-सुधार कर लेना.” शायद यह मन का आदेश था.
”मौका तो मिले!” उसने मन को तसल्ली देकर सहलाया था.
शायरी की महफ़िल में सुनंदा आई थी, उसी शिद्दत के साथ. फिर वे समुद्र-किनारे मिले थे. आज भी सुनंदा ने रेत पर उसका नाम लिखा था. ”अभी तक मेरा नाम!”
”और नहीं तो क्या! वादा जो किया था.”
”मुझसे शादी करोगी?”
”पर मैं तो अनपढ़ हूं!”
वीरेन ने पल भर के लिए सोचा, लेकिन संभलता हुआ बोला- ”जिसे इतने साल तक मेरा नाम लिखना याद रहा, वह अनपढ़ कैसे हो सकती है?”
अब दोनों की वीरान महफ़िल आबाद हो गई थी.
लीला बहन , सुन्दर रचना . सुनंदा और विरेन का संजोग लिखा ही हुआ था . फिर से घर आबाद हो गिया .
रखो हौसला वो मंज़र भी आएगा,
प्यासे के पास चलकर समंदर भी आएगा.