किसी को ढूँढती दयार में रहीं आँखें
किसी को ढूँढती दयार में रहीं आँखें
तमाम उम्र इंतज़ार में रहीं आँखें
बहा किसी की आँख से उदासियों का खूं
किसी की रात दिन ख़ुमार में रहीं आँखें
तलाशते तलाशते जिन्हें उमर गुज़री
पता चला किसी के प्यार में रहीं आँखें
हमें खिजा मिली तलाश में फ़जाओं की
किसी की उम्र भर बहार में रही आँखें
पता नही था प्यार में फरेब भी होगा
मिलेगा प्यार ऐतबार में रही आँखें
हमें गुलाब ही गुलाब की तमन्ना थी
उलझ किसी की सिर्फ ख़ार में रही आँखें
चमक रही हैं आसमान की बुलंदी पर
सदा जो सरहदों के प्यार में रही आँखें
सतीश बंसल
०४.०१.२०१८