गज़ल
दुआ ये दो मुझे मेरा सुखन पुकार उठे
आफरीन सारी अंजुमन पुकार उठे
साथ-साथ चले साया-ए-बहार मेरे
जहां से निकलूँ मैं चमन-चमन पुकार उठे
छुपाऊँ लाख मैं चाहे तुम्हें इस दुनिया से
आँख कह दे, माथे की शिकन पुकार उठे
ना आया है ना आएगा यहां कोई मगर
बार-बार ये दीवानापन पुकार उठे
कुछ लम्हों का है अँधेरा तुम घबराना मत
डूबते शम्स की किरन-किरन पुकार उठे
दिखे लहू जब अपनों की आस्तीन पे ही
लाश चुप रहे मगर कफन पुकार उठे
— भरत मल्होत्रा