कविता – समझ नहीं आता…
किससे क्या कहूँ
समझ नहीं आता
किस को ये दर्द सुनाएं
समझ नहीं आता
मैं बनकर आवारा पंछी
घूम रहा था
कहाँ से कहाँ पहुंचा
समझ नहीं आता
मेरे सुनने में तो
बहुत कुछ आया है
पर किस से क्या कहूँ
समझ नहीं आता
दुनियाँ वाले ही तो
सबकुछ सिखाते हैं
लेकिन उनसे क्या कहूँ
समझ नहीं आता
जो रूठकर हमसे
दूर चले गए
उन्हें कैसे मनाऊँ
समझ नहीं आता
लिखने को तो बहुत कुछ
लिख सकता हूँ मैं
पर उनके लिए क्या लिखूँ
समझ नहीं आता…
— रमाकान्त पटेल
समझ कर लिखे।
कुछ गलत लिखा है क्या सर