जीवन एक अंधकार है यदि जीवन में अंधकार ना हो तो ये जीवन बेकार है होती है कितनी प्यारी ये रातों की चांदनी बनती नभ के तारों से यह रातें मन भावनी होता नहीं अंधेरा तो दीपक हम ना पाते फिर कैसे इस जीवन में प्रेम का द्वीप जलाते ना होता अंधकार तो कैसे हम […]
Author: रमाकान्त पटेल
जिंदगी एक झमेला है…
जिंदगी एक झमेला है खुशी और ग़म का मेला है कौन अपना और पराया है ये सब स्वार्थ का खेला है रिश्ते-नाते प्यार, मोहब्बत चले जब तक पास धेला है जीवन के इस मकड़जाल से लड़ता ये इंसान अकेला है नहीं सुकूँ है इस दुनियाँ में सबके सिर तृष्णा का ठेला है नहीं काम आएगा […]
किसान की विनती
सुनो हे जीवन दाता सुनो हे पालन हार हम असहाय किसानों की करो विनती को स्वीकार वर्षोओं नीर धरा पर हम हैं बहुत लाचार सुनो हे जीवन दाता सुनो हे पालन हार हम कैसे करें आत्म रक्षा कैसे मनायें त्यौहार तुम बिन कौन सहारा है तुम बिन कौन लगाये पार सुनो हे जीवन दाता सुनो […]
जिंदगी गमज़दा हो रही है।….
जिंदगी गमज़दा हो रही है आज फिर आजमा रही है ले रही है हरदम इम्तिहान आज फिर से तड़पा रही है जिंदगी कितने मोड़ लेती है खुशी को ग़म से जोड़ देती है ग़म ही ग़म रह गए हैं अब खुशी ईद का चाँद हो रही है मैं अकेला नहीं हूँ दुनियाँ में पूरी दुनियाँ […]
ऑनलाइन….
आज की इस दुनियाँ में हो रहा सब ऑनलाइन इसको देखो,उसको देखो मिलते हैं सब ऑनलाइन नहीं किसी से मतलब इनको खाना-पीना सब ऑनलाइन पढ़ना-लिखना, हँसना-खेलना रोना भी है अब ऑनलाइन बिन मुँह खोले बात हो जाती होते किस्से सब ऑनलाइन कहाँ गए वो गुड्डे-गुड़ियाँ बच्चे हैं सब ऑनलाइन किताबों की तो बात छोड़ो ज्ञान […]
जीना सिखा रही है जिंदगी….
मुझे ये कहाँ ले जा रही है जिंदगी धीरे-धीरे जीना सिखा रही है जिंदगी नफरत हो रही है और मोहब्बत भी सही गलत में भेद बता रही है जिंदगी महफिल भी मिलती है और तन्हाई भी किस्मत का आईना दिखा रही है ज़िन्दगी एक वो अजनबी है और एक मैं हूँ दिलों को जोड़ना सिखा […]
मुस्काता हूँ……
कैसे-कैसे खुशी मिलती है लोगों को जिसको मैं नहीं समझ पाता हूँ देख लोगों के वनावटीपन को मैं सोच में जरूर पड़ जाता हूँ कि पल दो पल की हंसी है और जीवन में गम ही गम है कैसे समझाऊं खुद को ग़ालिब चंद उजाला बाकी सब तम है टूट चुका हूं अन्दर से मैं […]
दर्द का कर्ज़
अफसोस नहीं है अपने दर्द का जो तूने दिए तो और जमा हुए बन गया मैं दर्द का सौदागर तेरे दर्द देने से और अमीर हुए कौन कहता है कि मैं गरीब हूँ ख़ुशी बांटने से हम रहीश हुए लोग बेवजह ही दर्द देते गए हम खामखां उनके कर्जदार हुए – रमाकांत पटेल
प्रिय
देखा था तुमको प्रिय मैंने अपने हिय के आंगन में मिल जाओ तुम मुझको भर दूँगा खुशी तुम्हारे दामन में आ जाओ तुम राधा बनकर मैं भी तो तुम्हारा श्याम हूँ तुम हो यदि सीता प्यारी तो मैं भी तुम्हारा राम हूँ । – रमाकान्त पटेल
कविता की उत्पत्ति
दर्द की ज्वाला जब फूटती है तो कविता खुदबखुद निकलती है प्यार की डोर जब टूटती है तो कलम खुदबखुद चलती है मन जब अंदर से रोता है तो शब्दों का सैलाब आता है और अपना दर्द लिखते लिखते वो ग़ालिब बन जाता है -रमाकान्त पटेल