श्री विष्णु, श्री विष्णु, श्री विष्णु
शीर्षक देखकर ऐसा नहीं लगता कि शायद हम किसी धार्मिक विषय पर किसी चर्चा का उल्लेख करने जा रहे हैं | किन्तु नहीं, यहाँ कुछ अलग हट कर है | इस संसार में हर किसी को धन के पीछे भागते देखा जाता है, वास्तब में, धन हर किसी की आवश्यकता भी है और जीवन यापन का जरिया भी है | अक्सर मनुष्य को धन प्राप्ति हेतु माँ लक्ष्मी की आराधना करते देखा जाता है | कुछ लोग इसमें सफल होते हैं, और कुछ निराश | जो सफल होते हैं, उनके लिए तो ये कहा जा सकता है कि कुछ उनके पुण्य कर्मो का प्रताप होता है जिससे देवी लक्ष्मी प्रसन्न हो उन्हें अपनी छत्रछाया में ले उनकी हर मनोकामना पूर्ण होने का कारण बन जाती हैं |
किन्तु इससे इतर अधिक संख्या उन लोगों की होती है जो जीवन भर देवी लक्ष्मी की कृपा पाने को तरसते रहते है और सुखों के अभावों में पूरा जीवन व्यतीत कर जाते हैं और धन का सुख एक सपना बन कर रह जाता है |
जिन लोगों का यह कहना है कि हम तो सारे प्रयास करते हैं, विधि विधान से पूजा अर्चना करते हैं फिर पता नहीं क्यों लक्ष्मी प्रसन्न नहीं होती ? नए नए प्रयास करते रहते हैं, देवी लक्ष्मी को रिझाने के, कि वो प्रसन्न हो और उनके यहाँ निवास करे | लक्ष्मी भी इतनी चंचल कि पहले तो हम पर ध्यान ही नहीं देती, फिर कभी आई तो घर के दरवाजे से ही वापस हो जाती, या बहुत मेहरवानी हुई तो थोडा बहुत रुक कर चल देती और हम ठगे से देखते रह जाते |
असल में देखा जाये तो हम प्रयास ही गलत कर रहे होते हैं, इसलिए नतीजा भी हमारी आशानुरूप नहीं होता है | देवी लक्ष्मी को बुलाने के लिए उनकी इतनी ज्यादा नाक रगड़ने की जरूरत ही नहीं है, वो तो हमारे एक प्रेम भरे निवेदन से ही खुश हो कर स्वयं हँसतीं, झूमती आयेगीं | और अपनी कृपा बरसाएंगी | अब ये आप पर डिपेंड करता है कि आप, उन को कब तक रोक सकते हो |
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शायद आप मुस्कुरा रहे हो कि मै भी कैसी मूर्खतापूर्ण बातें कर रहा हूँ कि धन की देवी लक्ष्मी को बुलाने के लिए उनकी पूजा-अर्चना की बहुत आवश्यकता नहीं, हमारे एक इशारे पर आयेगीं, हमारी इच्छा के अनुसार रुकेंगी | क्या हो गया मुझको, जो इतना रोचक और महत्वपूर्ण विषय कॉमेडी के ट्रैक पर डाल दिया |
जी हाँ, यही हकीकत है | अपनी ऊपर लिखी बातों को समझाने के लिए मैं, आपको इस विषय से दूर, कहीं अलग लिए चलता हूँ |
आप अपना परिवारी जीवन बड़े ही खुशहाल तरीके से व्यतीत कर रहे हैं | निश्चित ही आपके कई मित्र भी होंगे | उनमे कुछ अविवाहित होंगे और कुछ शादीशुदा भी होंगे | अब आप अपने किसी विवाहित मित्र को आमंत्रित करिए, निश्चय ही वो अकेला आएगा | अगर आपने उसकी पत्नी को भी बुलाया होगा तो भी हो सकता है वह अकेला ही आये | हो सकता है वो अपनी पत्नी को आपके यहाँ लाना पसंद न करता हो | अगली बार आप उसे फिर बुलाते हैं और भाभी जी को साथ लाने के लिए विशेष आग्रह करते हैं, और घर आ कर स्वागत के भी विशेष इंतजाम करते हैं | अपनी पत्नी को भी खास हिदायत देते हैं कि मित्र की पत्नी पहली बार आ रही है, खास ख्याल रखना, अपनी बातों से उसका मन लगाये रखना | कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारी ऊल जलूल हरकतों से नाराज़ हो चली जाये | मेरा दोस्त बड़ी मुश्किल से राजी हुआ था, साथ में लाने को | और अंततः वो दोस्त सपत्नी हमारा निमंत्रण स्वीकार कर आखिर पधार जाता है |
इस पूरे प्रसंग में आपको कुछ भी अलग नहीं लगा होगा | क्यूंकि ये हमारे लिए रोज की सी बात होती है | किन्तु अब हम थोडा उल्टा करते हैं | हम किसी ऐसी विवाहित महिला का जिक्र करते हैं जिसे हम लाइक करते हैं | किस्मत से, वो भी हम से परिचित है, यानि हम उसके लिए अनजान नहीं हैं और हम चाहते है कि कभी वो हमारे गरीबखाने पर भी पधारे | इसके लिए हम अपने सारे प्रयास करते हैं कि उन्हें सादर आमंत्रित करें और वो पधारें | किन्तु ध्यान देने की बात ये है कि हम अपने प्रयास में अक्सर असफल रहते हैं | अब कारण कुछ भी हो, चाहे उस महिला को अपने पति की अनुमति न मिली हो या स्वयं उसी का मन न हो, आने का | अगर वो आती भी है तो अपने मन से आएगी, और अपने मन से ही उठ कर चल देगी |
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वहीं मित्र की पत्नी अपने पति के साथ आती है तो उसे तब तक रुकना पड़ता है जब तक हम मित्र का साथ नहीं छोड़ते | और जाते समय अगली बार आने का आश्वासन भी मिल जाता है |
अब पता चला, हम कहाँ गलती कर रहे थे |
हम लक्ष्मी को बुलाना तो चाहते है किन्तु अकेले, बिना उनके पति के, यानि भगवान् विष्णु के |
क्या आपको अच्छा लगेगा कि कोई आपको तो पूछें नहीं और आपकी पत्नी को बुलाने के लिए नित नए प्रयास करता रहे | आप भी एक आध बार तो अनुमति दे देंगे | किन्तु बाद में बात तो पत्नी को आपकी ही माननी पड़ेगी |
अगर हमें देवी लक्ष्मी को आमंत्रित करना है तो उनके पति को भी बुलाना होगा या यूँ कहे कि भगवान विष्णु को बुलाएँगे तो पति के साथ पत्नी भी आ सकती हैं, इस बात के पूरे चान्स बन जाते हैं |
आपने देखा होगा कि चंचल स्वाभाव की स्त्री कभी एक जगह नहीं बैठती | कभी इधर, कभी उधर | कभी इस घर, तो अगले पल उस घर | इतना घुमने फिरने वाली महिला का भी स्वाभाव होता है कि अगर पति कहीं जाता है तो उसके साथ भी जरुर जाये या फिर पति द्वारा साथ चलने के आदेश का उल्लंघन तो कदापि नहीं कर सकती | ठीक बिलकुल ऐसा ही स्वाभाव देवी लक्ष्मी का माना जाता है | अपने मन से तो घूमेंगी ही, और पति का साथ भी न छोड़ेगी |
इसलिए अब आपको कुछ नहीं करना है केवल भगवान विष्णु की आराधना करें, उन्हें प्रसन्न करें साथ ही उनकी पत्नी देवी लक्ष्मी को भी याद करें |
आराधना का मतलब ये नहीं कि दिन रात पूजा पाठ में लग जाये | इसके लिए आपको अपने आचरण को सुधारना होगा, परिवार का वातावरण शुद्ध करना होगा | मेहनत में विश्वास करते हुए कर्म करने होंगे | बच्चों में अच्छे संस्कारों के बीज बोने होंगे ताकि अगली जनरेशन अच्छी हो | घर की गृहलक्ष्मी का सम्मान हो | छल कपट से दूर | सत्य का साथ | धर्म का विकास | बुजुर्गों का आदर | अतिथि का न हो निरादर |
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यही सब वो बातें हैं जो हमें हमेशा ध्यान रखनी होंगी |
किसी भी धार्मिक चर्चा का निचोड़ भी यही होता है कि भगवान वहीँ बसते हैं जहाँ स्वच्छ, शुद्ध, सुंदर वातावरण होता है | एक बार अगर हमने भगवान विष्णु को प्रसन्न कर लिया और अपने यहाँ बुलाने में कामयाब हो गए तब तो लक्ष्मी को भी झक मार कर आना ही पड़ेगा और तब तक रहना होगा जब तक उनके पति रुके रहेंगे | और भगवान विष्णु को रोकनेका सूत्र तो अब आपको मालूम चल ही गया है |
अब आपको पति के साथ साथ पत्नी का भी ध्यान रखना होगा | उनका पूरा आदर सम्मान होना चाहिए | ऐसा कुछ भी नहीं होना चाहिए, जिससे देवी नाराज हो जाये | और वहां से चलने की हठ पकड़ लें | यकीन मानिये अगर एक बार नारी नाराज हो गयी तो फिर दुनिया का कोई भी पति उसे मनाने की तो दूर, उसके पास उसकी हठ को मानने के आलावा और कोई चारा नहीं होता है |
इसलिए जब लक्ष्मी आती है तो ध्यान रखिये पीछे पीछे अनेक प्रकार के दुर्गुण भी अंदर आने को तत्पर रहते हैं | ठीक उसी प्रकार जैसे बाज़ार में किसी सुंदर नारी के पीछे पीछे दो चार लफंगे टहलते मिल ही जायेंगे | ये दुर्गुण होते है, बुरे व्यसन, बुरी आदतें, बुरी लते, बुरी बाजी जैसे जुआबाजी, लड्कीबाजी, रेसबाजी आदि | देखने वाली बात हैं कि हर बुरी आदत को पूरा करने के लिए धन का प्राचुर मात्रा इस्तेमाल किया जाता है | धन का बुरा इस्तेमाल, धन की देवी के अपमान से कम नहीं होता है | कोई नारी अपना अपमान कब तक सह सकती है ?
आखिर एक दिन वो भी नया ठिकाना खोज लेती है |
कुल मिला कर मेरे कहने का मतलब इतना ही है कि जिस प्रकार हम अपनी पत्नी को अनजानी जगह पर जाने से रोकने का प्रयास करते हैं या फिर किसी उचित जगह से मिले सपत्नी आमंत्रण पर सहर्ष पत्नी सहित जाने को तत्पर रहते हैं | क्या यही सोच पति भगवान विष्णु की नहीं रहती होगी ? और हम होते हैं कि केवल देवी लक्ष्मी की स्तुति करते रहते हैं और चाहते हैं कि वो आयें और निवास करें हमारे यहाँ | फिर उसके बाद हमारे उचित अनुचित व्यवहारों को भी सहन करती रहें | ये तो असंभव है |
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तो इसलिए मित्रों, अगर आप किसी पुरुष से मित्रता करते हैं उसे पूरा आदर सम्मान करते हैं तो कुछ समय बाद उसकी पत्नी भी आपकी बातों को गौर करेगी | आपके किसी भी प्रकार के आग्रह को मनवाने हेतु पाने पति पर जोर डाल सकती है | किन्तु डायरेक्ट सम्पर्क साधने में मामला बिगड़ने के आसार ज्यादा हो जाते हैं |
इसलिए पूरी तरह से जान लीजिये कि…
यदि श्री का साथ चाहिए तो विष्णु को मनाना ही होगा | इसलिए कहते हैं … श्री विष्णु… श्री विष्णु … श्री विष्णु…
— उमाकान्त श्रीवास्तव