लेख- जो बीत गई सो बात गई
“जो बीत गई सो बात गई” ये हम सब बोलते भी हैं, लिखते भी हैं और पढ़ते भी हैं लेकिन अमल नहीं करते। सत्य यही है कि जो बीत गया उसको याद करके दुख का अनुभव किया जा सकता है, उस पर मंथन करके अपने आज को विषैला बनाया जा सकता है। उसे किसी भी मूल्य पर बदला नहीं जा सकता। अगर हम कुछ बदल सकते हैं तो वो है हमारा वर्तमान जिससे हमारा भविष्य भी परिवर्तित हो सकता है। लेकिन हम अपनी संपूर्ण उर्जा अतीत के कटु अनुभवों को स्मरण करने में ही खर्च कर देते हैं और अपने वर्तमान की ओर बिल्कुल ध्यान नहीं देते। हमसे ज्यादा बुद्धिमान तो हमारे नन्हें मासूम बच्चे हैं जो किसी भी झगड़े, डाँट, या बुरे अनुभव को थोड़ी ही देर में भूल जाते हैं। इसीलिए उनके स्वभाव में एक निर्दोषता होती है जो उन्हें प्रसन्नचित्त बनाए रखती है। जिस किसी ने भी हमारे साथ अतीत में दुर्व्यवहार किया है या कोई अन्याय किया है उसे माफ कर देना और भूल जाना ही उचित है। उसकी भलाई के लिए नहीं अपने मन की शांति के लिए। यदि हम ऐसा कर पाएं तो शांतचित्त होकर अपने वर्तमान और भविष्य की बेहतरी के लिए प्रयास कर सकेंगे।
— भरत मल्होत्रा