कविता

शॉर्टकट

शॉर्टकट है एक बीमारी, फैशन इसे समझ बैठे,
मैडम ”मैम” बन जाती हैं, मास्टर साहब ”मास्साब” बन बैठे.

मम्मी ”ममी” बन जाती हैं, डैडी बन जाते हैं ”डैड”,
बी.एड. ”बैड” बन जाते हैं, एम. एड. बन जाते हैं ”मैड”.

रामायण की कथा सुनाने, पंडितजी अब नहीं आते हैं,
प्रिय भक्तजन बड़े प्रेम से, उसकी टेप चलाते हैं.

लाले पड़ गए पंडितों के, कथा सुनाएं किसको?
दफ्तर में बन बैठे बाबू, व्यथा सुनाएं किसको?

दूल्हा सहना नहीं चाहता, बड़े-बड़े मंत्रों की मार,
शॉर्ट करो पंडित जी इनको, फेरे भी करवाओ चार.

महीना भर गीतों की महफिल, कौन सजाए शादी में?
चट मंगनी पट ब्याह रवैया, चलता है अब शादी में.

क्रिया (रस्ते) को छोटा कर देना, शॉर्टकट कहलाता है,
शॉर्टकट को चाहने वाला, अब मॉडर्न कहलाता है.

तुम भी सोच-समझकर देखो, क्या रस्ता अपनाना है?
शॉर्टकट ही करना है या, सही मार्ग अपनाना है?

शॉर्टकट रस्ता अपनाना, अक्सर होता सुखदाई,
लेकिन कभी-कभी होता है, यह अत्यंत ही दुखदाई.

कभी-कभी तो शॉर्टकट से, जीवन कट हो जाता है,
इसीलिए शॉर्टकट करना, संकट और बढ़ाता है.

संकट को कट करना हो तो, शॉर्टकट की छोड़ो चाल,
महंगा भी पड़ सकता है यह, बुरा भी हो सकता है हाल.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “शॉर्टकट

  • लीला तिवानी

    शॉर्टकट यानी छोटा रास्ता अपनाने की प्रवृत्ति कभी-कभी भले ही लाभ दे, लेकिन अक्सर नुकसानदायक होती है.

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