कविता – हमारा दस्तूर
आज का प्रेम दिवस सिर्फ बिस्तर तक ही सीमित है .
चौराहे पर कहा कहा करता बच्चा उसका उदाहरण है .
पुरुष हाथ खङे करता है – मै क्या जानुं ?
मै तो पुरुष हुं , खरा सोना हुं
ना कोई जूठा हुआ हुं ना मेरे ऊपर कोई दाग लगा है .
गलती तुम्हारी है
क्यो आई थी मेरे पास??
अरे यार , छोङो जो हुआ सो हुआ
अगली बार ‘छतरी’ का इस्तेमाल करूंगा ,
ना कोई डर ना कोई बदनामी
प्यार होगा भरपूर
यही है हमारा आज का दस्तूर…
— नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’