कविता

कविता – हमारा दस्तूर

आज का प्रेम दिवस सिर्फ बिस्तर तक ही सीमित है .
चौराहे पर कहा कहा करता बच्चा उसका उदाहरण है .

पुरुष हाथ खङे करता है – मै क्या  जानुं  ?
मै तो पुरुष  हुं , खरा सोना हुं
ना कोई जूठा हुआ हुं ना मेरे ऊपर कोई दाग लगा है .

गलती तुम्हारी है
क्यो आई  थी मेरे पास??

अरे यार , छोङो जो हुआ सो हुआ
अगली बार ‘छतरी’ का इस्तेमाल  करूंगा ,
ना कोई डर ना कोई बदनामी
प्यार होगा भरपूर
यही है हमारा आज का दस्तूर…

— नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’

नीतू सुदीप्ति 'नित्या'

जन्म -- 20 - 11 - 1980 शिक्षा -- मैट्रिक प्रकाशन -- हमसफर और छंटते हुए चावल (कहानी संग्रह ) भोजपुरी में एक उपन्यास धारावाहिक रूप में प्रकाशित । देश की प्रतिष्ठित पत्र -पत्रिकाओं में 150 रचनाएँ प्रकाशित । सोशल मिडिया -- अनुभव और मैसेंजर आफ आर्ट में रचनाएँ प्रकाशित । फेसबुक पर रचनाएँ प्रशंसित । अनुवाद -- डा. लारी आजाद की कविता और डा. जय कुमार जलज की लघुकथा का भोजपुरी अनुवाद प्रकाशित । मेरी एक कहानी 'लड्डू चोर' का भोजपुरी अनुवाद गंगा प्रसाद अरुण जी के द्वारा । पुरस्कार -- कमलेश्वर स्मृति कथाबिंब पुरस्कार से एक कहानी पुरस्कृत और शुभ तारिका में चार लघुकथाएँ पुरस्कृत । सम्प्रति -- स्वतंत्र लेखन मेल -- n.sudipti @gmail.com