जीवन….
ये जीवन !
भावनाओं की बहती नदी है
जहाँ एक ओर गर्भ में
प्रेम और संवेदनाएं तो दूसरी ओर
क्रोध और ईष्या का जलजला है
अब तय करना है हमें
अपने भीतर बैठे इंसान को
किस बहाव में बहने देना है
स्वच्छ निर्मल पवित्र मन
मानवता रूपी अनमोल धन
जिसके अंतर्मन में बसते ईश्वर
ईष्या क्रोध लोभ और मोह का मलबा
इंसान को बनाता विवेकहीन
जीवन होता छिन्न भिन्न अर्थहीन
अपूर्ण अतृप्त जीवन अंतिम दिनों में
ढूंढता चैन सुकून….
पर कर्मो के प्रभाववश अटकती है साँसे…
निकलता नही दम आसानी से
ये जीवन!
भावनाओं की बहती नदी है….