सदाबहार काव्यालय-25
गीत
मन के दीप जला दे भगवन
दीप बहुत-से जला चुकी हूं, हुआ न दूर अंधेरा,
जीवन बीत रहा है निशिदिन, करके तेरा-मेरा।
कृपादृष्टि जब हो तेरी तब, तू-ही-तू दिख जाए,
मन के दीप जला दे भगवन, जगमग जग हो जाए॥
कभी न आई पास तुम्हारे, भटकी द्वारे-द्वारे,
सबकी आस लगाई पल-पल, अब तो नयना हारे।
अश्रुकणों को तेल बना जो, किरणों को फैलाए,
मन के दीप जला दे भगवन, जगमग जग हो जाए॥
आने को है अंतिम क्षण, पर मैं तैयार कहां हूं,
तनिक समय दे चरणोदक से, मैं चुपचाप नहा लूं।
राह कौन-सी आऊं जिससे, तू मुझको मिल जाए?
मन के दीप जला दे भगवन, जगमग जग हो जाए॥
नहीं बुद्धि है, बल भी कम है, साधन भी सीमित हैं,
चारों ओर अंधेरा छाया, उज्ज्वलता परिमित है।
तू प्रकाश के सुमन खिला दे, क्षीण वदन मुस्काए,
मन के दीप जला दे भगवन, जगमग जग हो जाए॥
लीला तिवानी
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मन के दीप जल जाएं, तो भीतर-बाहर रोशनी-ही-रोशनी है.