सदाबहार काव्यालय-26
गीत
प्रेम का गुलशन महक रहा है
मन का मधुबन चहक रहा है
प्रेम का गुलशन महक रहा है-
चारों ओर हैं आज बहारें
फूल-ही-फूल हैं जिधर निहारें
सूरज दमके, चंदा चमके
तारों का जाल भी लहक रहा है
प्रेम का गुलशन महक रहा है-
इस गुलशन में जो भी आया
उसने निज मन को महकाया
उसने चाहत-राहत पाई
साज़ खुशी का खनक रहा है
प्रेम का गुलशन महक रहा है-
प्रीत की है बस रीत निराली
जिसने निभाई उसने पाई
लाख हों मुश्किल, पाया है हल
रंग इश्क का झलक रहा है
प्रेम का गुलशन महक रहा है-
लखमीचंद तिवानी
वेबसाइट-
http://www.ltewani.com/2008/06/welcome.html
आदरणीय लीला बहन जी,
लख्मीचंद जी ने वही कहा जो उनके दिल में है । जितना सुन्दर दिल वैसी ही
सुन्दर रचना ।
प्रिय रविंदर भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको रचना बहुत सुंदर लगी. हमेशा की तरह आपकी लाजवाब टिप्पणी ने इस ब्लॉग की गरिमा में चार चांद लगा दिये हैं. आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. जितना सुन्दर दिल वैसी ही सुन्दर रचना. इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
लीला बहन , भाई साहब की रचना बहुत्ब सुन्दर लगी .
प्रीत की है बस रीत निराली
जिसने निभाई उसने पाई
लाख हों मुश्किल, पाया है हल
रंग इश्क का झलक रहा है
प्रेम का गुलशन महक रहा है- वह किया लिखा है .
प्रिय गुरमैल भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको रचना बहुत सुंदर लगी. हमेशा की तरह आपकी लाजवाब टिप्पणी ने इस ब्लॉग की गरिमा में चार चांद लगा दिये हैं. इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
प्रेम एक घटना नहीं, ज़िंदगी है,
प्रेम एक क्रिया नहीं, अस्तित्व है,
प्रेम एक भावना नहीं, आपका प्राकृतिक स्वभाव है.