स्वास्थ्य

कभी-कभी उपवास भी कीजिए

आप भोजन के बारे में बहुत सी बातें पढ़ चुके हैं। लेकिन हमारे लिए कभी-कभी भोजन छोड़ देना भी अच्छा होता है। इसे प्रचलित भाषा में उपवास कहा जाता है। जिस प्रकार आपको सप्ताहभर काम करने के बाद एक दिन के अवकाश की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार हमारी पाचन प्रणाली को भी सप्ताह में एक दिन आराम देना स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त लाभदायक होता है।

उपवास हमारे धर्म का अंग भी है, जिसे व्रत कहा जाता है, परन्तु जिस प्रकार यह किया जाता है, वह स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होता है। लोग पहले तो दिन भर भूखे रहते हैं और खाली पेट चाय पीते रहते हैं। फिर दोपहर बाद या शाम को कूटू, सिंघाड़े आदि से बनी भारी-भारी चीजें और खोए की मिठाइयाँ ठूँस-ठूँसकर खा लेते हैं। यह बहुत भयंकर है। ऐसे व्रत से तो व्रत न करना ही बेहतर है। ऐसा व्रत करने वाले प्रायः बीमार ही रहते हैं। इसलिए ऐसा कभी नहीं करना चाहिए। इसके स्थान पर युक्तिपूर्वक उपवास करना चाहिए, जिसकी विधि यहाँ बतायी जा रही है।

साधारण उपवास में केवल साधारण शीतल या गुनगुने जल के सिवाय कुछ नहीं लिया जाता। मौसम के अनुसार साधारण ठंडा या गुनगुना जल प्रत्येक घंटे पर एक गिलास की मात्रा में पीते रहना चाहिए। उपवास में दिन भर में तीन-चार लीटर जल अवश्य पीना चाहिए। प्रारम्भ में उपवास से कमजोरी अनुभव होगी। उसे सहन कर जाना चाहिए और लेट जाना चाहिए। अति आवश्यक होने पर कभी-कभी पानी में आधे नीबू का रस या/और एक चम्मच शुद्ध शहद मिलाया जा सकता है।

एक से तीन दिन तक का उपवास कोई भी व्यक्ति सरलता से कर सकता है। इसमें कोई विशेष कष्ट नहीं होता। यदि कोई कष्ट जैसे दस्त, उल्टी, बेचैनी या बुखार हो जाता है, तो उसे प्रकृति की कृपा मानना चाहिए। इनसे पता चलता है कि उपवास का पूरा प्रभाव हो रहा है और प्रकृति हमारे शरीर से विकारों को निकाल रही है।

सामान्य स्वस्थ व्यक्ति को सप्ताह में एक दिन का पूर्ण उपवास अवश्य कर लेना चाहिए। इससे सप्ताह भर में खाने-पीने में हुई असावधानियों या गलतियों का परिमार्जन हो जाता है। सप्ताह में एक दिन का उपवास करना स्वास्थ्य का बीमा है। ऐसा व्यक्ति कभी बीमार पड़ ही नहीं सकता और सर्वदा स्वस्थ रहकर अपनी पूर्ण आयु भोगता है।

यदि केवल जल पीकर उपवास करना कठिन लगे, तो उसके स्थान पर रसाहार करना चाहिए। इसमें केवल मौसमी फलों का रस या सब्जियों का सूप दिन में तीन या चार बार लिया जाता है और शेष समय इच्छानुसार पानी पिया जाता है। इससे कमजोरी कम आती है और उपवास का लाभ भी काफी मात्रा में मिल जाता है।

जो लोग इतना भी न कर सकें उन्हें सप्ताह में एक दिन सायंकाल का भोजन त्याग देना चाहिए। इससे भी पाचन क्रिया को आवश्यक आराम मिल जाता है और पाचन शक्ति में सुधार होता है। जो लोग सप्ताह में एक समय भी बिना खाये नहीं रह सकते, उन्हें स्वास्थ्य की इच्छा छोड़ देनी चाहिए और मनमाना खा-पीकर कुपरिणाम भुगत लेना चाहिए।

विजय कुमार सिंघल

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: [email protected], प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- [email protected], [email protected]