काव्य-रचनाओं का मेला
आज सदाबहार काव्यालय में काव्य-रचनाओं का मेला लगा हुआ था. सभी काव्य रचनाएं खूब सज-धजकर आई थीं. गुलाबी प्लाज़ो-सूट में सजी गज़ल ‘तभी कुछ आएगा मज़ा’ अपने रचयिता राजीव गुप्ता के गुण गाते नहीं थकती थी. कितनी सुंदरता से रचा है मेरे रचयिता ने मुझे! इसलिए मुझे सर्वप्रथम स्थान हासिल हुआ है. जापानी पंखा हाथ में लिए गुरमेल भमरा के ‘हाइकु’ क्या किसी से कम थे! वे अपने जापानी रंगरूप पर खुद ही फ़िदा हुए जा रहे थे. इधर राजकुमार कांदु की काव्य-रचना ‘वक्त’ सबको वक्त की नज़ाकत समझाती डोल रही थी. अंकित शर्मा’अज़ीज़’ जी की नज़्म ‘ज़रा फासले से रहा करो’ का संदेश दे रही थी, तो नीली साड़ी से मैच करता ब्लेज़र पहने लीला तिवानी का गीत ‘सद्भावना जीवन-सार बने’ सबको साथ मिलकर सद्भावना से जीवनयापन करने को प्रोत्साहित कर रहा था. ठेठ भारतीय वेशभूषा में सुसज्जित लखमीचंद जी की कविता ‘हिंदी: देश का भाग्य’ हिंदी भाषा की पैरवी कर रही थी, तो मनजीत कौर की कविता ‘जिंदगी’ सही ढंग से जीवन जीने का फलसफा बयां कर रही थी. जितेंद्र अग्रवाल की कविता ‘कुदरत के दर्द से अनजान: आज का इंसान’ बढ़ते प्रदूषण के खतरे से सावधान कर रही थी, तो आशीष श्रीवास्तव की कविता ‘देना अब साथ मेरा’ कुछ शर्माते-कुछ सकुचाते अपने प्यार का इज़हार कर रही थी. प्यार का इज़हार डॉ. प्रदीप उपाध्याय का गीत ‘विकास की कीमत’ भी कर रहा था, लेकिन यह इज़हार था कवि का वृक्ष के प्रति. नए वस्त्र-आभूषण धारण किए हुए प्रवीण गुप्ता का गीत ‘नये वर्ष का स्वागत’ करने में व्यस्त था.
तभी अचानक वीणा की नींद खुल गई और उसका मन कर रहा था, कि ऐसे मेले का स्वप्न चलता ही रहता तो अच्छा था. उठकर काम करते-करते वह सोचने लगी, कि आज उसे काव्य-रचनाओं के मेले का स्वप्न क्यों दिखाई दिया! फिर उसे ध्यान आया, कि पिछले कई दिनों से वह रेडियो पर दिन में कई बार गणतंत्र दिवस के उपलक्ष में होने वाले कवि सम्मेलनों के विज्ञापन सुन रही थी और उसका मन प्रतिदिन प्रकाशित होने वाली सदाबहार काव्य-रचनाओं में खोया हुआ था.
आप लोग जानते ही हैं, कि आजकल सदाबहार काव्यालय में काव्य-रचनाओं का मेला लगा हुआ है. आप लोग भी अपनी सदाबहार काव्य रचनाएं भेजकर इस सदाबहार काव्यालय में प्रतिभागिता कर सकते हैं. आप सभी की सदाबहार-सकारात्मक काव्य-रचनाओं का हार्दिक स्वागत है.