कविता

प्रेम…

यूं छोड़ चले जाना तुम्हारा
कितना दर्द देता है दिल को
दिल ही जाने….
किस तरह दर्द की परतें
बिछ जाती है सीने में
और उन परतों के बीच
रिसता अकेलेपन का दंश
आसुओं की सिसकियां
सुबकती आवाजें….
जो पुकारती है तुम्हें बार-बार
और तुम सुन नही पाते
क्यों तुम्हारे लिए प्रेम
जज्बातों के मायने नही रखते
ये कैसा दिल लगाना
जहां सम्वेदनाएँ मौन में जिए
तुम्हारे दिए दर्द की वेदना
घोल रही मेरे प्रेम के शीतल जल में
नफरत का जहर
फिरभी भूल नही पाऊंगी तुम्हें
पर तुम्हारी यादें
जीने भी नही देती मुझे।

*बबली सिन्हा

गाज़ियाबाद (यूपी) मोबाइल- 9013965625, 9868103295 ईमेल- [email protected]