मृत्यु नव जीवन
फ़रेब जिंदगी इक फ़साना |
सच तो है सिर्फ, मृत्यु का आना ||
अजर-अमर न कोई जहां में |
रो क़ब्र पे 2-दिन, चलें रफ़्तार से ज़माना ||
माया-न-काया, साथ कर्मो को जाना |
आखिरी साथ, अग्नि तक है निभाना ||
मालूम आत्मा के सीवा, नश्वर सब |
फिर क्यूँ ? मोह दुनियाँ से लगाना ||
मृत्यु है , नव जीवन चक्र |
फिर क्यूँ ? मृत्यु पे अश्क बहाना ||
हो जाती आखें .. नम अक्सर |
मगर’ ये दुनियाँ तेरा घर न मेरा ठिकाना ||
फ़रेब है जिंदगी, इक अफ़साना |
सच तो है सिर्फ, मृत्यु का आना ||
— रीना सिंह “रचना”