सृजन-सुख
सृजन-सुख में व्यस्त हस्त-युगल,
हैं हर्षित, पुलकित, परम मुदित,
कर रहे कामना मिले सुफल,
हो जग में सबका भाग्य उदित.
ये बना रहे घर, बेघर हैं,
श्रम ही तो इनका ज़ेवर है,
केवल श्रम में सुख पाते हैं,
श्रम से न तनिक घबराते हैं.
औरों को छाया देने को,
ये घनी घाम में तपते हैं,
पानी से रक्षा करने को,
ये पानी में ही गलते हैं.
उंगली में पट्टी बांध चले,
दीवार बनाने रहने को,
कर नाप-जोख, कर मोल-तोल,
किस हेतु? किसी के रहने को.
घर में बच्चे सुख पाएंगे,
इनके बच्चे बिल्लाते हैं,
मिट्टी के लौंदे-से बच्चे,
मिट्टी से सने चिल्लाते हैं.
फिर भी न शिकन है चेहरे पर,
इनको न तनिक गुस्सा आता,
सृजन में मिले जो सुख इनको.
संतोष उसी से है आता.
घाम के अर्थ- 1. सूर्य का ताप; धूप; गरमी 2. कठिनाई; विपत्ति; संकट 3. पसीना
यह कविता 1984 में लिखी गई थी, जब हमारा घर बन रहा था. घर बनाने वाले बेघर मजदूर मजबूर नहीं प्रसन्न रहते हैं. वे उस घर में रहने का सुख भले ही न ले पाएं, पर सृजन-सुख में मस्त-व्यस्त रहते हैं.