हमसफर
पुलकित हो झूम जाती हूँ ,
अक्स तेरा चहुँ ओर पाती हूँ ।
मैं हूँ कागज तुम मेरी पाती हो ,
तुम से ही तो जीवन पाती हूँ ।
अधरों पर हैं गीत मिलन के ,
दिल में तन्हाई रहती है ।
मैं हूँ जीवन तुम धड़कन हो ,
मनमीत तुम्हें ही पाती हूँ ।
उर में बसाई है छवि तेरी ,
छंद में ज्यूँ लय रहती है ।
मैं हूँ खुशबू उपवन की ,
तुम में ही तो खो जाती हूँ।
जीवन है एक जिम्मेदारी ,
सार है जीवन का दुनियादारी ।
उम्मीदों के रेतीले पनघट पर ,
राह तुम्हारी ही तकती हूं ।
जीवन है एक कश्ती जैसा ,
बिन नाविक के पार नहीं ।
गाड़ी का एक पहिया हूँ मैं ,
दूजा तुम्हें ही पाती हूँ ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़