गज़ल
दिया साकी ने ऐसे झूम के पैमाना मस्ती में
हुआ पीते ही मैं तो बेखबर दीवाना मस्ती में
पिला डाला ना जाने क्या मय में घोलकर उसने
साथ रिंदों के सारी रात था मयखाना मस्ती में
नए पत्ते नए फल-फूल जवानी छा गई फिर से
बहार आई तो आया पेड़ वो पुराना मस्ती में
खबर अंजाम-ए-इशक की तो थी उसे लेकिन
नादानी कर गया इक आदमी सयाना मस्ती में
तनहाई की इन शामों में अक्सर याद आता है
हवाओं में उसकी ज़ुल्फ का लहराना मस्ती में
रक्स करता है उसका अक्स मेरे ज़ेहन में ऐसे
गूँजे वादियों में ज्यों कोई तराना मस्ती में
— भरत मल्होत्रा