ग़ज़ल
वो फिर ना बन सकूँगा जो बुरा होने से पहले था
सज़ा का डर बस मुझको सज़ा होने से पहले था
यूँ ना दोष दे मुझको, मेरे हालात भी तो देख
कि कितना बा-वफा मैं बेवफा होने से पहले था
गुज़र जाती है बस इस सोच में ही ज़िंदगी सारी
क्या होगा बाद मेरे और क्या होने से पहले था
खरीदे हैं तजुर्बे बेच कर मासूमियत अपनी
मैं इक मासूम सा बच्चा बड़ा होने से पहले था
ताकत और दौलत पर नहीं जायज़ गुरूर इतना
ये सब औरों की मिल्कियत तेरा होने से पहले था
कोशिश भी करूँ तो भी ना बन पाएगा दोबारा
वो रिश्ता जो हमारा फासला होने से पहले था
— भरत मल्होत्रा