उसने ही सच्चा सुख पाया
यह दुनिया दुख का सागर है,
सुख कहां मिला और किसे मिला!
यहां केवल कष्ट उजागर है,
है केवल शिकवा और गिला.
सुख है पर जैसे मृगतृष्णा,
है केवल भटकन-ही-भटकन,
बचपन बीता, यौवन भागा,
पर अब तक मिली न सुख-झलकन.
प्रातः की आशा रह सकी,
दोपहर का दर्प भी दमित हुआ,
संध्या की स्वप्निल छाया से,
जीवन सपनीला नहीं हुआ.
धरती पर धैर्य नहीं पाया,
अंबर पर कुछ क्षण मस्त हुए,
फिर अंतरिक्ष पर जा पहुंचे,
पर अंत में हौसले पस्त हुए.
निर्धन तो दुख में हैं डूबे,
धन वाले भी सब व्याकुल हैं,
मध्यम वर्ग भी बेहाल पड़ा,
सब लगते हर पल आकुल हैं.
जैसे कांटों में फूल छिपे,
वैसे दुख में सुख की छाया,
जिसने दुख को ही सुख माना,
उसने ही सच्चा सुख पाया.
लीला बहन , कविता अछि लगी .इस संसार में सुखी रहना भी एक आर्ट ही है वरना ” नानक दुखिया सब संसार “
दूसरों को खुशी देकर देखो,
अपने हिस्से की खुशी आपको अपने आप मिल जाएगी.