कविता

बदलाव

 

जकड़ी गई
पकड़ी गई
पश्चिम के हथकड़ों में
हम बस नापते रह गये
मुट्ठीभर झूठे मानदंडों में
गगनचुंबी इमारतों में
जमीं का पाठ पढाया जाता है
लाभ-हानि पर ध्यान केंद्रित
सच्चाई पर झूठ का रंग चढाया जाता है
जमीं पर बैठने वाले
गगनचुंबी इमारतें देखते हैं
एकता का सृजन नहीं होता अब
बस इक दूजे पर स्याही फैंकते हैं
सरकारों का सरंक्षण पाकर
पश्चिम का दानव फल-फूल रहा है
वजूद ढूँढ रही संस्कृति पूतलों में
उसका ही परिवार अब उसे भूल रहा है
अटल अशों का इसके
संघर्ष जारी है अभी
धमनियों में रक्त है कईयों के
वो मरे नहीं हैं अभी

 

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733