ग़ज़ल
जिंदगी में काम कुछ हो नाम के
बज्मे नाज़े चूमा’ लूँ मैं जाम के |
आँखों’ से आखें मिली, दिल खो गया
याद कुछ है तो, तुम्हारे नाम के |
डरता’ हूँ तेरी गली जाने से मैं
मुहरा’ मेरा हल्क तेरे दाम के |
देर से आशिक़ खडा है तेरे’ दर
हो इनायत, इक नज़र, ईनाम के |
व्यग्र आँखें, बेकरारी दिल की’ है
प्यासा’ लब हैं, राह देखूँ पैगाम के |
पांच सालों में अरब पति हो गए
काम धंधा कुछ नहीं, धन आम के |
यह ग़ज़ल ‘काली’ लगी उनकी तरह
ज्यों रुबाईयाँ उमर खैयाम के |
बज्मे नाज़े= प्रेमिका के महफ़िल
हल्क=गला,कंठ, दाम=फन्दा,जाल
कालीपद ‘प्रसाद’