लघुकथा

पीड़ा के प्रकोष्ठ

दो कमरों के घर में जन्मी और अब तक दो कमरों के घर में रह रही स्मिता के मन में पीड़ा के कितने प्रकोष्ठ हैं, यह शायद स्मित और स्निग्ध मुस्कान वाली स्मिता खुद भी नहीं गिन पाई है. सच पूछो तो स्मिता उन प्रकोष्ठों में झांकना भी नहीं चाहती, लेकिन पीड़ा ने यों ही कब किसका पीछा छोड़ा है. बचपन से होश संभालते ही उसने गरीबी, लाचारी और बीमारी का अखण्ड साम्राज्य देखा है. मां-पिता-चाची-ताई-मौसी-मामा सभी तो बीमार थे और थे चारपाई से उठ पाने को मोहताज. इन सबके बीच पंक में पंकज की तरह खिलकर स्मिता तनिक भी पंकिल नहीं हो पाई थी. सूरत से सुदर्शन स्मिता समर्पण भाव से सबकी सेवा करती हुई सबका प्यार-दुलार और आशीर्वाद पाकर अपनी प्रतिभा से छात्रवृत्ति पाती हुई कॉमर्स ग्रेजुएट हो गई थी और राज्य सरकार में अच्छी नौकरी भी पा गई थी. इतने पर भी पीड़ा का प्रकोष्ठ उसके पीछे लगा हुआ था. चार दशक बीत जाने पर भी निर्धन परिवार की होने के चलते उसका विवाह नहीं हो पाया था. एक दिन लगभग पांच दशक के सुदर्शन और अच्छी सरकारी नौकरी वाले अधेड़ उम्र के व्यक्ति से उसका विवाह भी हो गया, लेकिन मन को किसने देखा था! दो कमरों वाले उस नए घर में भी वह मन मसोसकर रह रही थी, लेकिन किसी को महसूस नहीं होने दिया. मायके वालों को कुछ बताकर उनका मन दुखाना नहीं चाहती थी. नए मेहमान के आने की आशा ने उसे हर्ष की एक किरण से प्रकाशित कर दिया, लेकिन वह किरण भी धूमिल हो गई, जब यह कहकर उसका अबॉर्शन करवा दिया गया कि इस उम्र में बच्चा होगा तो पालना मुश्किल होगा. ऐसा ही बहुत कुछ सहन करते हुए भी आंखों में काजल डाले, हाथों-पैरों की उंगलियों में सलीके से नेल पॉलिश लगाए, सोने के असली ज़ेवर होते हुए भी नकली ज़ेवर पहने मुस्कुराहट के पीछे पीड़ा के प्रकोष्ठों की चाबी छिपाए दुनिया-जहान को स्मिता बहुत खुश नज़र आती थी. मायके-ससुराल के सभी रिश्तेदारों, सहकर्मियों, पड़ोसियों, सहेलियों, यहां तक कि अपने पति की नज़र में भी उसके जैसी सूरत-सीरत से सुदर्शन और सुशील महिला कोई नहीं है. सबके प्यार-दुलार, आशीर्वाद अपनी प्रतिभा व चेतना की चाबी से रिश्तों के बंद ताले खोलती रही.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

2 thoughts on “पीड़ा के प्रकोष्ठ

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    पीड़ा के प्र्कोशोठ कहानी बहुत अछि लगी लीला बहन .

  • लीला तिवानी

    इस लघुकथा में बड़े सलीके से मन की पीड़ा को छिपाती नायिका स्मिता अपनी अपार पीड़ा के बावजूद स्मित हास्य को अपना साथी बनाकर पीड़ा को ही अपना संबल बनाने में सफल होती है. वह अपार धैर्यपूर्वक सबके प्यार-दुलार, आशीर्वाद अपनी प्रतिभा व चेतना की चाबी से रिश्तों के बंद ताले खोलती रही.

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