मेरे गीत अमर कर दो
इच्छा थी इस जग के हेतु, कुछ तो करके जाऊं,
और नहीं तो धन्यवाद के , गीत ही कुछ गा पाऊं,
क्लिष्ट, सहजता-रहित गीत क्या, गाऊं और सुनाऊं,
तनिक सरसता और मधुरिमा, गीतों में भर दो
मेरे गीत अमर कर दो
इस रूखे दुखभरे जगत में, कोमलता लानी है,
एक सलोनी गमक सुमन-सी, जग में फैलानी है,
कैसे फैले महक कहां से, मधुकण लाऊं लुटाऊं?
इतने सारे रंग निराले, मैं कैसे भर पाऊं,
तनिक मधुर और लुनाई, गीतों में भर दो
मेरे गीत अमर कर दो
इस सूखी धरती में सुख के, अंकुर कैसे फूटें?
सजल मेघ सम पनियल मन से, भीत द्वेष की टूटे,
कैसे मेघ बनूं मयूर को, किस विध मैं हर्षाऊं?
त्राहि-त्राहि करता जगतीतल, उसे तृप्त कर पाऊं,
तनिक सजलता और सरलता, गीतों में भर दो
मेरे गीत अमर कर दो
लखमी चंद तिवानी
मेरे गीत अमर कर दो एक सुन्दर रचना है लीला बहन .
आदरणीया बहनजी ! आदरणीय लखमीचंद तिवानी जी की इस अनुपम रचना से काव्यालय का मंच सुसज्जित हो चुका है । बहुत ही शानदार रचना के लिए आदरणीय तिवानी जी को बधाई व आपको हार्दिक धन्यवाद !
गीतों की दुनिया अमर है,
सच मानो यह सुरीला सफर है,
कोई साथी मिले तो सोने पे सुहागा,
वरना मेरे गीत ही मेरे सुरीले हमसफर हैं.