“सच्चा दोस्त”
मैं जो हूँ वही रहने दो मुझे
तू समन्दर है दरिया रहने दो मुझे
मुझे नहीं है चाहत गैरों की
अपने साये में रहने दो मुझे
नहीं दिया तुमने साथ मेरा
तो सिर्फ़ तन्हा ही रहने दो मुझे
मेरी फिदरत में नहीं है मुस्कुराना
अपने ग़मों के साथ रहने दो मुझे
नहीं बांट सकते हो दुःख तुम मेरा
तो अकेला ही रोने दो मुझे
बहुत लोग मिले हैं इस ज़माने में
अब अपने आप में खोने दो मुझे
कोई किसी का नहीं है आजकल
अपने ही आँसू पीने दो मुझे
कहते हैं दोस्त ही साथ देते हैं
पर दोस्त ने ही रुला दिया मुझे
उसकी नहीं मेरी ही गलती थी
सच्चा ‘दोस्त’ ढूंढने दो मुझे
– रमाकान्त पटेल