माफीनामा
सुबह सवेरे ‘गंदा’ गांव के सरपंच लखविंदर राम ने गुरजीत सिंह का दरवाज़ा खटखटाया, तो गुरजीत सिंह हैरान हो गए. पहली बार कोई सरपंच उनके घर आए थे. गुरजीत सिंह ने उनको अंदर बुलाकर आदर से बिठाया. सरपंच जी ने उनको बधाई देते हुए बताया, कि उनकी बेटी की पहल पर हमारे गांव का नाम अब ‘गंदा’ गांव की जगह ‘अजीत नगर’ हो जाएगा. सरपंच जी ने पी.एम.ओ. कार्यालय से आई चिट्ठी दिखाते हुए कहा- ”बिटिया हरप्रीत कौर ने पी.एम.ओ. कार्यालय को गांव का नाम बदलने के लिए चिट्ठी लिखी थी, उसी का यह सुपरिणाम है.” उन्होंने बिटिया हरप्रीत कौर को बुलाने को कहा. गुरजीत सिंह बोले ”बिटिया तो सैर करने गई हुई है.”
”ठीक है, फिर मैं चलता हूं”, सरपंच जी बोले- ”बिटिया को मेरा माफीनामा और प्रशस्ति पत्र दे देना.”
”प्रशस्ति पत्र तो समझ में आता है, माफीनामा किसलिए?” गुरजीत सिंह हैरान होते हुए बोले.
”बिटिया ने रास्ते चलते मुझे कई बार गांव का नाम बदलवाने के लिए कहा था, जो काम हम सबल होकर भी नहीं कर पाए, वह छोटी-सी बिटिया ने खुद कर दिखाया.” सरपंच जी का कहना था.
”माफीनामा तो हमें भी अपनी बदगुमानी के लिए लिखना होगा.”
”वो क्यों?” हैरान होने की बारी अब सरपंच जी की थी.
”वो इसलिए, कि पहले हम बिटिया को पी.एम.ओ. कार्यालय को चिट्ठी लिखने के लिए मना करते थे, फिर भी उसने जब चिट्ठी लिख ही दी, तब उसे डांटते थे.”
चलते-चलते सरपंच जी बता गए- ”हमें हरप्रीत पर गर्व है और हम 26 जनवरी को उसे सम्मानित करेंगे.”
विश्वास और साहस साथ हों तो सब काम आसान हो जाते हैं, बिटिया हरप्रीत कौर ने ऐसा ही किया, इसलिए उसे सफलता भी मिली और सम्मान भी.