गीतिका – माँ
अनुपम छवि है जिसकी हर किरदार में
माँ कहे जग इसको इस संसार में
अपने लहू से पाल्के धरती पर लाये
इससे बड़ा न देव कोई संसार में
साथ दुआएं माँ की लेकर जो निकले
नफा ही नफा है उनके व्यापार में
नीड़ हो जाए रौशन इसके आलोक में
जलता हुआ दीया है माँ परिवार में
काँटों भरे रस्ते हैं दुनिया के यारो
माँ का दामन महका फूल बहार में
कुछ भी कर सकती है बच्चों की खातिर
जग से भिड़ने का माद्दा है इस तलवार में
तिनका तिनका जोड़ के नीड़ जो बुनती है
भूल न जाना पंछी ऊँची उड़ार में
धुप आंधी बारिश को हंसकर सहती है
माँ भी धरती जैसी है नुहार में
जिसकी गोद से ममता सदा बरसती है
भीगते रहना तुम उसकी फुहार में
शब्द उच्चारण जिसने हमें सिखाया है
कर दो अर्पित सब उसके सत्कार में