” ————————– चाह बढ़ी जाती है ” !!
रोज गोलियां सीमा पर हैं , जान यों ही जाती है !
हम जवाब देते हैं लेकिन , बात नहीं भाती है !!
हम विशाल बनकर दिखलाते , बदले में घाटा है !
कब तक माफ करेगें इनको , अकल नहीं आती है !!
आतंकी साये छाये हैं , बम बारूद धमाके !
नेताओं की राजनीति हल , खोज नहीं पाती है !!
परिणामों की उम्मीदें हैं , सब आस लगाये बैठे !
यहां सर्जिकल लगता हमको , केवल धमकाती है !!
शौर्य पराक्रम सेना का है , नेता सब बड़बोले !
दुश्मन देश का हित ये साधे , समझ नहीं आती है !!
हल्ला हम पर होता आया , हम मुकाबला करते !
किस दिन हल्ला हम बोलेगें , चाह बढ़ी जाती है !!
बलिदानी सीमा पर चौकस , व्यर्थ न जाए जानें !
पीड़ा मन के अंदर की , सही नहीं जाती है !!