मोहन का बछड़ा
मोहन अपना छोटा बछड़ा,
एक दिवस ले खेत गया,
इधर-उधर वह लगा खेलने,
खेलते-खेलते चौंक गया.
मक्खी एक बड़ी तेजी से,
भाग रही, मोहन बोला,
”मक्खी रानी, क्यों भगती हो,
किससे डर है तुम्हें भला?”
मक्खी बोली, ”पीछे देखो,
मैं उससे डरकर भागी,
मोहन ने मुड़ पीछे देखा,
चिड़िया भी डरकर भागी.
”छोड़ो उस छोटी मक्खी को,
मत डराओ” मोहन बोला,
”उसको कौन डराता भैया,
मेरा ही है दिल डोला.”
इतने में बिल्ली आ पहुंची,
मोहन बोला, ”रुक जाओ,
छोटी-सी चिड़िया रानी को,
इतना अधिक न आप डराओ.”
बिल्ली बोली, ”मोहन भैया,
मैं तो खुद ही डरकर भागी”.
इसी तरह कुत्ते, बकरे और
बंदर ने भी बात कही.
बंदर के पीछे था कल्लू,
वह भी डरकर दौड़ रहा था,
किसी तरह की खड़-खड़ सुनकर,
सबके जैसे भाग रहा था.
कल्लू बोला, ”तुम भी भागो,
मत पूछो तुम क्या है बात!”
मोहन भी भगने वाला था,
तभी दिखी बछड़े की लात.
बछड़े के पैरों में रस्सी,
अटक गई थी बाल्टी-संग,
जब वह दौड़े खड़-खड़ करती,
बाल्टी घिसटती उसके संग.
मोहन बोला, ”कल्लू भाई,
ठहरो, मेरी मदद करो,
बछड़े की रस्सी छुड़वाओ,
उसको तो आजाद करो.
”ठहरो-ठहरो” सुनकर सब ही,
भागने वाले ठहर गए,
कल्लू, बंदर, बकरा, कुत्ता,
बिल्ली, चिड़िया, मक्खी रुके.
मोहन के नजदीक वे आए,
एक-दूसरे को लगे देखने,
मोहन बोला, ”मेरा बछड़ा,
डरा सभी को लगा भागने.”
मोहन का बछड़ा बाल कथा गीत से बचपन की यादें ताज़ा हो जाती हैं.