सदाबहार काव्यालय-36
गीत
यह देश तेरा भी मेरा भी
अल्लाह गर हैं तेरे भगवान हैं मेरे भी
है लाल लहू तेरा तो लाल है मेरा भी
इंसान रहो बनके यह सबने सिखाया है
यह देश तो है पहले तेरा भी मेरा भी
बांटा है हमने रब को ऐलान कर दो सबको
अब देश ना बांटेंगे ये तेरा भी है मेरा भी
हिन्दू हों चाहे मुस्लिम हम एक मां के बेटे
मिलजुल कर बढ़ें आगे यह देश हमारा है
बाजू ही हैं हम दोनों एक जिस्म हमारा है
यह भी मुझे प्यारा है वह भी मुझे प्यारा है
राजकुमार कांदु
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प्रिय ब्लॉगर राजकुमार भाई जी, सदाबहार काव्यालय में आपकी प्रतिनिधि रचना आपकी कविता हमें बहुत अच्छी लगी. आपकी सशक्त लेखनी के साथ-साथ आपकी अद्भुत भावाभिव्यक्ति को भी सलाम. इतनी सुंदर काव्य-रचना के आपका आभार व अभिनंदन.