अनुत्तरित प्रश्न
स्नेहा और स्निग्धा बचपन में साथ पढ़ी थीं. कई सालों बाद आज वे एक लेखक सेमीनार में मिली थीं. स्नेहा डॉक्टर बन गई थी, स्निग्धा इंजीनियर. लेखन के उन्मुक्त गगन में डिग्रियां कहीं आड़े नहीं आतीं. आज रात को स्नेहा और स्निग्धा ने प्रकृति की गोद में विचरण करने का मन बनाया. स्थानीय लेखकों से उन्हें ऐसे स्थान की जानकारी भी उपलब्ध हो गई थी. अब वे दोनों थीं और प्रकृति का सुहाना साथ. ढेर सारी बातें हुईं. लेखन की, घर-बाहर की, पति की, बच्चों की. स्नेहा ने स्निग्धा के जुड़वां बच्चों की बातों को रुचिपूर्वक सुना. शायद लेखन के लिए उसका अगला विषय जुड़वां बच्चे ही हो. स्निग्धा ने स्नेहा की लाड़ली अपूर्वा की शक्ल को हू-ब-हू स्नेहा जैसा बताया.
”पर मैंने तो उसे गोद लिया है!” स्नेहा की इस मासूम स्वीकृति ने स्निग्धा को अचंभित कर दिया.
”अपूर्वा को इस सच्चाई का पता है?” स्निग्धा की स्वाभाविक जिज्ञासा थी.
”नहीं, हमने खुद को भी इस बात से अनजान बना रखा है.”
अब दोनों के बीच सन्नाटा था और थे ”खुद डॉक्टर होते हुए भी बच्चा गोद लेने की आवश्यकता क्यों पड़ी?”, ”बच्चा कहां से गोद लिया?” ”समाज से कैसे छिपाकर रखा?” आदि-आदि कई अनुत्तरित प्रश्न.
laghu katha bahut achhi lagi lila bahan .
अनुत्तरित प्रश्न, दोस्ती में भी कई बातें पूछने में हिचक होती है, हमने अक्सर देखा है, कि लेडी डॉक्टर्स ने हजारों महिलाओं की गोद को भरकर उन्हें मां का दर्जा देने में सहायता की है, लेकिन उनकी अपनी गोद मां बनने के सुख से वंचित रही है. उनमें हमें बचपन में देखी डॉक्टर संतोष, फिर डॉक्टर आशा और फिर डॉक्टर टक्कर का नाम याद आता है.