कविता

आभासी एहसास…..

कुछ रिश्ते आभासी होते हुए भी
गढ़ लेते हैं मन के आंगन में
प्रेम का ताजमहल….

जज्बातों की कोमल नींव से
सशक्त बनता प्रेमरूपी स्तम्भ
चारों ओर बहती शीतल हवाओं में
सुनाई देती रूहानी संगीत….

उड़ता प्रेम का नन्हा कबूतर
सीने से निकल बार-बार
अठखेलियां करती खुद की अदाएं
मंद-मंद मुस्काती नाजुक हंसी….

हकीकत से बेपरवाह..!!
दिल की बस्ती में
जल उठता है
मुहब्बत का मशाल….

नूर-सा चमकता
नजरों के आईने में
दो दिलों के बीच मिटती
दूरियों का एकाकीपन….

सान्निध्य में बिखर उठती है
हृदय में दबे एहसासों का उद्दीपन
जैसे मोगरे की खुशबू से
महक उठा हो सारा जहान….

सांसों की हर रफ्तार देता दस्तक
न सम्भल पाने की
नहीं थमता सच्चा प्रेम बहलाने से
जब तक हो न एहसासों का मिलन….

कुछ रिश्ते आभासी होते हुए भी
गढ़ लेते हैं मन के आंगन में
प्रेम का ताजमहल….!!

*बबली सिन्हा

गाज़ियाबाद (यूपी) मोबाइल- 9013965625, 9868103295 ईमेल- [email protected]