गज़ल
ये रात बिन तेरे बड़ी काली नज़र आई
तू मिला तो सुबह की लाली नज़र आई
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इश्क हो चाहे वफा हो या सुकून-ए-दिल
हर शै तुम्हारे दर की सवाली नज़र आई
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वीरां थी बस्ती-ए-दिल कशकोल के मानिंद
तूने छुआ तो मय की प्याली नज़र आई
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कदम जहां पड़े तेरे जलने लगे चिराग
अमावस भी तेरे नूर से दीवाली नज़र आई
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भीड़ थी बहुत मेरे चारों तरफ़ यूँ तो
तेरे बगैर ज़िंदगी खाली नज़र आई
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।