गीत- वो सच माने
मुझको इतना ज़्यादा जाने.
जो भी कह दूँ वो सच माने.
वो जीवन में ऐसे आया.
जैसे कड़ी धूप में छाया.
पथ की सारी थकन भुला दी,
उसने इतना स्नेह लुटाया.
सिरहाने हो शीश दबाता,
पाँव दबाता हो पैताने.
बिना लगाये कोई अर्ज़ी.
वो जाने मेरी हर मर्ज़ी.
जो भी चाहूँ वो कर देता,
मेरी बात न माने फर्ज़ी.
इसी अदा पर दिल दे बैठा,
जाने कब जाने-अनजाने.
क्या बतलाऊँ कितना सुंदर.
जैसा बाहर वैसा भीतर.
इसीलिये तो लगता है वो,
और सभी से मुझको बेहतर.
मेरी हर इक उलझन को वो,
पल में लगता है सुलझाने.
— डॉ. कमलेश द्विवेदी
कानपुर
मो.9415474674