मोहब्बत
बड़ी उलझन में फंसी है जिंदगी मेरी ,
न डोर मिलती है कहीं से मंजे की
टूट गयी है पतंग मेरी ।
दुनिया की रस्मों करम से वाकिफ नहीं थी
ये नन्ही सी जान मेरी ,
अलाव का एक छोटा सा दीपक है ये कशिश मेरी ।
उमराव की तरह फना होने चली थी
ये नासमझ उम्र मेरी
सफ़ेद बालों से झांकती है ये रोशनाई मेरी
ऐ दिल छोड़ दे सोचना दुनिया की बातों को
कैद में है आज भी हिम्मत,
मोहब्बत है आज भी कायनात मेरी ।
— वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़