लघुकथा

शाहजहाँ और उस की इन्वैस्टमैंट

एक चांदनी रात को बादशाह शाहजहान, ताजमहल के इर्द गिर्द घूम रहे थे। कभी वोह संगमरमर के बने हुए बैंच पर बैठ जाते, कभी बहते चश्मों में ताजमहल के अक्स को देखते। आज वोह बहुत उदास थे। यूँ तो बहुत से लोग हर रात को आ जाते और पुरानी बातों को ले कर गुफ्तगू करते रहते थे लेकिन आज वोह अब तक अकेले ही थे। जवाहर लाल नेहरू जी एक तरफ से आते दिखाई दिए, शाहजहां का चेहरा उन को देख कर कुछ खिल सा गया। कैसे हो खुरम भाई ! जवाहर लाल ने आते ही पूछा। बस ठीक ठाक ही हूँ, शाहजहां ने जवाब दिया। आज कुछ बुझे बुझे से लगते हो, मुमताज की याद तो नहीं आ गई ? जवाहर लाल ने पूछा। मुमताज़ तो हमेशा मेरे दिल में रहती है, उस की याद के तो अब कोई अर्थ ही नहीं हैं लेकिन आज मुझे बहुत बातों ने उदास किया हुआ है। पूछने पर शाहजहाँ बोले, ” जवाहर भाई, जो मैंने किया, आप को पता ही है। मैंने देश का इतना पैसा इमारतों पर लगाया कि आम लोग गरीबी में ही जूझते रहे। गरीबों पर बहुत ही ज़ुल्म हुआ। आज तो भारत के लोग मेरे बारे में सब कुछ जानते हैं और दुःख की बात यह है कि बुढ़ापे में मेरे बेटे ने ही मुझे कैद कर के रखा, तो इन इमारतों पर इतना पैसा खर्च करना मेरी बेवकूफी नहीं तो और किया थी। वैसे यह तो हमारे खानदान में एक परम्परा ही रही है कि तख्त हासिल करने के लिए सगे बहन भाईओं को भी बक्शा नहीं जाता। ऐसा ही मेरे बेटे औरंगजेब ने किया, जिस ने सारे भाईओं को मार दिया और मुझे भी कैद में रखा। जिस मुमताज़ के लिए मैंने यह ताज महल बनवाया था, उस में रहने की भी मुझे इजाजत नहीं दी गई। इस से भी बुरा, मेरे लड़के औरंगज़ेब ने सारे देश में तशदद किया, जिस को सोच सोच मुझे बहुत दुःख होता है कि जब लोग औरंगज़ेब की बातें नफरत से करते हैं तो एक बाप होने की हैसीअत से मुझे बहुत शर्मिंदगी होती है। मुझे यह भी दुःख होता है कि मैंने हिंदुस्तान का पैसा पानी की तरह, बहुत बर्बाद किया, जिस के हकदार भारत के लोग थे, जवाहर भाई, किया करूँ मुझे समझ नहीं आती कि अपने खानदान पर लग्गे धब्बों को कैसे साफ करूँ ” शाहजहां की आँखों में आंसूं थे।
जवाहर लाल ने शाहजहां के कंधे पर हाथ रखा और सांत्वना देते बोले, ” खुरम भाई , अपने दिल से ऐसी बातें निकाल दो कि तुम ने बहुत गलत काम किये थे, यह समझ लो कि सिंहासन पर बैठने के लिए बहुत कुछ करना पढता है, तुम ने इतहास में कोई नई बात नहीं की थी, मुगलों के आने से पहले अशोक ने किया किआ था, कलिंग की लड़ाई में !कितने देशवासिओं की हत्याएं की थीं !, और तो और महाभारत की लड़ाई में कितने लोग मारे गए थे, उस वक्त तो इस्लाम का नामोनिशान ही नहीं था, जब राम चंद्र जी की फ़ौज ने श्री लंका पर हमला किया था, वोह भी तो किसी और देश पर आक्रमण ही था, मुगल तो फिर भी भारत के वासी ही हो गए, जिस से देश का पैसा देश में ही रहा, लूटा तो लूटा सिर्फ अंग्रेज़ों ने, जो लूट लूट कर अपने देश को ले गए, हम सभी हिंदुस्तानिओं को आज़ादी लेने के लिए कितनी कुबानीआं देनी पढ़ी, तुम जानते ही हो, तुम ने या तुम्हारे खानदान ने जो भी किया, पैसा तो देश में ही रहा !, रही बात तुम्हारे इमारतें बनाने पे खर्च तो भाई एक बात ज़रा ध्यान से सुन लो, तुम ने जितना खर्च किया, वोह तुम पाई पाई वापस कर रहे हो, बहुत पैसा तुम ने दे दिया है जो तुम ने खर्च किया, उस से कहीं ज़्यादा तुम देश को अभी देते रहोगे ” शाहजहां कुछ हैरान हुआ जवाहर लाल की ओर देखने लगा। कुछ देर बाद जवाहर लाल फिर बोले, ” खुरम भाई , जितनी इमारतें तुम ने बनाई थीं, उस में अब तुम्हारे खानदान का कोई भी शख्स रहता नहीं बल्कि वोह अब सबी के लिए खुले हैं, उन को देखने के लिए दुनिआं भर से लोग आते हैं जो टिकट ले कर ही देखने आते हैं। कितने होटल पैसा कमा रहे हैं जिन में देशी और बिदेसी रहते हैं। यह होटल देश को टैक्स देते हैं, फिर यही पर्याटक खरीदारी करते हैं, जिस से वीओपारिओं को फायदा पहुँचता है और यह लोग भी टैक्स देते हैं, किया किया वर्णन करूँ, समझ लो तुम्हारी इमारतों पर लगी इन्वैस्टमैंट देश को बहुत ही फायदा पहुंचा रही है, आप के बेटे औरंगज़ेब को लोग नफरत तो करते हैं लेकिन जो भी तुमारी इमारतें देखने आता है, नाम सिर्फ तुम्हारे की ही चर्चा होती है ”
सुन कर शाहजहां पर्सन हो गया और जवाहर लाल को गले लगा लिया और बोला, जवाहर भाई मेरे दिमाग पर सदिओं का बोझ आप ने हल्का कर दिया।

4 thoughts on “शाहजहाँ और उस की इन्वैस्टमैंट

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, आप बहुत कम रचनाएं लिखते हैं, लेकिन आपकी हर रचना ग़ज़ब की होती है. यह रचना भी अपने आप में अद्भुत बन पड़ी है. अत्यंत सटीक व सार्थक सृजन के लिए आप बधाई के पात्र हैं.

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      लीला बहन , बस आप का ही परताप है वर्ना हम तो कुछ भी नहीं थे .

  • राजकुमार कांदु

    आदरणीय भाईसाहब ! वाह ! आपने तो जवाहर लाल के रूप में शाहजहां को बहुत अच्छे से समझा दिया । सचमुच लूटेरे तो वो कहलाएंगे जो यहां से लूट का ले गए । शाहजहां की बनाई इमारतें आज भी देश का नाम रोशन कर रही हैं और पैसे भी कमा रही हैं । बहुत सुंदर रचना में आपने बता दिया कि शाहजहां का यह एक बहुत ही बढ़िया सार्थक इन्वेस्टमेंट था । धन्यवाद !

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      धन्यवाद भाई साहब , दरअसल इस को अंग्रेज़ी वाले कहते हैं blessing in disguise . जो इतहास था वोह बीत गिया लेकिन लूटा तो सिर्फ अंग्रेजों ने ही था . मुगलों ने लूटा भी तो देश में ही रहा और आज उन की इस इनवैस्टमेंट से कितना धन देश को मिल रहा है और आगे भी मिलता रहेगा .

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