सदाबहार काव्यालय-37
चंद अशरात
ग़म मिलते गए सरे-राह, ख़ुशी की तलाश में
ग़म से किया किनारा, रास्ते ही खो गए
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इस लंबी ज़िन्दगी में ज़ायका बनाये हैं
तल्खियां भी ज़ुरूरी हैं, दिल में इन्हें सजाये हैं
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साथ हमसफ़र जो है तो चलने का है मज़ा
जो हमकदम खुदा हो, तो खुदी से हो पहचान
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जो खुद को खास कहते हैं, बड़े ही आम होते हैं
खुदा ही खास हैं, ऐसा अदीबों ने बताया है
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दर्द-ए-दिल से ही दुनिया में सारे काम होते हैं
गर ये नहीं तो दिल के उजाले भी बड़े नाकाम होते हैं
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हौसलों से ही तो ज़िन्दगी आसान होती है
इस रोशनी से ही दिलों में जान होती है
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(अदीब-गुणीजन)
हौसलों से ही तो ज़िन्दगी आसान होती है
इस रोशनी से ही दिलों में जान होती है vaah khoob lila bahan .
कश्तियां भी थीं, किनारे भी थे,
रोशनी का कतरा दे सकें, ऐसे सितारे न थे.