अब कितना विकास करोगे
हर पांच साल में होता है, विकास कुछ दिन,
सत्तर साल बाद भी, सड़कों पर सोते कुछ दीन।
गए सोने पर सोते नहीं, रात बितती तारें गिन – गिन,
वादा ऐसा करते हैं, जो ना हो मुमकिन।
हर पांच साल में होता है, विकास कुछ दिन।।
अशिक्षा, कुपोषण, चिकित्सा और बाल मजदूरी पर,
आज भी विवश होते, क्योंकि सबको विश्वास है आप पर।
आपके विचार सुन, लगता है जैसे हम आपके हैं अधीन,
चारों ओर फैला अंधियारा, हृदय के पीड़ा से है सब मलीन।
हर पांच साल में होता है, विकास कुछ दिन।।
आज भी कितनों के बचपन, बीत रहें हैं होटलों पर,
राजनीति में कुछ सामाजिक लोग, बिक रहे हैं बोतलों पर।
ना सेकों राजनीतिक रोटियां, असहायों की लाचारी पर,
कर जोर प्रार्थना है साहब, अब और ना करो हमें गमगीन।
हर पांच साल में होता है, विकास कुछ दिन।।
— संजय सिंह राजपूत