तुम जानते नहीं मैं कौन हूं
मैं धरती का सबसे विकसित प्राणी हूं,
सोच, समझ, और बोल भी सकता हूं।
मैं देख, सुन, अनजान भी बन सकता हूं,
सब कुछ जानकर भी, क्यो मैं मौन हूं।।
तुम जानते नहीं, मैं कौन हूं।।
इस धरती का सारा काम, मैं कर सकता हूं,
एक – दूसरे को लड़वा, मैं खुद नहीं लड़ सकता हूं।
हिम्मत है मुझमें इतनी, मैं चांद पर घर बनवा सकता हूं,
गूंगो का मैं वक्ता, अंधों का नयन हूं।
तुम जानते नहीं, मैं कौन हूं।।
सब जिसे महान कहते – फिरते हैं, इस धरती पर,
सब जिसे सबसे सम्पन्न समझते हैं, इस धरती पर।
सच में वह सबसे बड़ा कंगाल है, इस धरती पर,
क्योंकि मैं , घमंड में चूर, खुद में मगन हूं।
तुम जानते नहीं, मैं कौन हूं।।
— संजय राजपूत
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