हामिद
मिश्र देश के एक शहर में,
खाल्दिया नाम का एक गांव था,
इसी गांव में अब्दू नाम का,
रहता एक गरीब किसान था.
निर्धन तो था अब्दू फिर भी,
एक नेक इंसान था अब्दू,
मिलनसार था, ईमांदार था,
रखता सबका ध्यान था अब्दू.
धर्म का वह पाबंद खेतिहर,
पढ़ता नियम से रोज नमाज़,
रमज़ान में रोजे रखता,
था वह अच्छा मेहमाननवाज़.
बड़े-बूढ़ों का आदर करना,
और कमाई मेहनत की,
अतिथि का सत्कार ये तीनों,
विशेषताएं थी अब्दू की.
उसकी बड़ी तमन्ना थी वह,
बने धनी औरों की तरह,
कम-से-कम एक एकड़ भूमि,
बेटे हामिद को दे किसी तरह.
उसको था विश्वास खुदा पर,
कभी-न-कभी तो ऐसा होगा,
हामिद होगा भूमि-मालिक,
खुशियों का तब मौसम होगा.
एक बार हामिद तैरने,
गया नदी के तट पर था,
तभी एक लड़की की चीखें,
सुनकर जल में कूद गया.
बड़े जतन से उसे बचाकर,
नदी-किनारे ले आया,
जेनब थी वह बहिन चचेरी,
जिसकी जान बचा पाया.
सुनकर सभी खेतिहर दौड़े,
ठोकी पीठ उस बालक की,
बेटी के बचने की सुनकर,
पहुंचे हाजी आबिद भी.
खूब प्यार कर बोले, ”बेटा,
तूने अच्छा काम किया,
खुदा तुझे आबाद करेगा,
तूने मेरा भला किया.
अब्दू के खेतों से लगती,
एक एकड़ भूमि मेरी है,
तूने मेरी लाज बचाई,
अब यह भूमि तेरी है.
हामिद कुछ भी बोल न पाया,
कहा पिता ने, ”करो सलाम,
‘शुक्रिया चाचाजी’ कहकर,
चाचा को तुम करो प्रणाम”.
हामिद ने ऐसा ही करके,
चाचा को आदाब किया,
अब्दू खुश था अपने मन में,
काम ये अब नायाब हुआ.
बहुत दिनों की हसरत उसकी,
पूरी आज खुदा ने की,
हामिद खुश था भूमि पाकर,
और जेनब की जान बची.
आज खुदा ने उसकी सुन ली,
पूरी कर दी उसकी तमन्ना,
जो रखता विश्वास है उस पर,
करता पूरा काम वो अपना.
अब्दू की तमन्ना थी हामिद को विरासत में कम-से-कम एक एकड़ भूमि देना. उसे विश्वास था कि किसी-न-किसी तरह से ऐसा हो जाएगा. हामिद को भूमि एक एकड़ भूमि मिल भी गई. जगत नियंता अप्र विश्वास करने वाले का बेड़ा पार होता है.