कविता

हृदय छिन्न – भिन्न हो रहा

नहीं चाहते शिक्षा – दीक्षा, हमको अज्ञानी रहने दो,
भूखे हैं हम गरीब भी है, हमें इसी हाल में रहने दो।
बहुत दिनों से नहीं कह पाए, रहे हृदय में ही दबाए।
हर बार भरोसा दिया हमको, पर जन्म से ही है सताए।

हृदय छिन्न भिन्न हो रहा, नहीं रही अब सहनशक्ति।
नहीं करना है हमको अब और, देशद्रोहियों की भक्ति।
हम पर इतना अत्याचार कर रहे, बन गए बड़ी शक्ति।
बहुत व्याकुल होकर रच रहा, हृदय विदारक यह पंक्ति।

देशभक्तों को कहते हो, जो हो रहा वे उसी के काबिल हैं।
एक अकेला नहीं केवल, बल्कि पूरे देशभक्त जाहिल हैं।
पर तुम भूल गए मान्यवर, उनसे ही भारत की गरिमा हैं।
तुम्हारे निजी सुरक्षा के भी, उनको ही तो परवाह हैं।।

मेरा लाल गया शरहद पर, ताकि तुम रहो सुख – चैन से,
कलाई पर तुम खुशी – खुशी, बधवा सको राखी बहन से।
मां, बाप, भाई, बहन, पत्नी और बच्चों का ना प्यार मिला।
कैसे जाहिल हो गए ऐसे, कुर्बानी का दे रहे हो यह सिला।।

संजय सिंह राजपूत
8125313307

संजय सिंह राजपूत

ग्राम : दादर, थाना : सिकंदरपुर जिला : बलिया, उत्तर प्रदेश संपर्क: 8125313307, 8919231773 Email- [email protected]