सारस और लोमड़ी
एक गांव के पास ताल में, सारस एक रहा करता था,
दिन भर पानी में रहता था, खुश सबको करता रहता था.
एक लोमड़ी वहीं पास में, रहती थी, आती-जाती थी,
बड़े प्रेम गाना गाकर, सबका मन वह बहलाती थी.
एक बार सारस से बोली, ”भैया घर मेरे आओ,
भोजन खाकर साथ हमारे, मेरे मन को हर्षाओ.
सारस बोला, ”अच्छा दीदी, कल मैं घर पर आऊंगा,
मैं खाता हूं खीर, वही तुम, बनवाना मैं खाऊंगा.
खीर बनाई बड़े जतन से, डाले किशमिश और बादाम,
दो थालों ले आई वह, बोली, ”खाओ सारसराम”.
कैसे खाऊं खीर सोचने लगा उसे था दुःख भारी,
न्यौता देकर मुझे छकाया, दीदी की गई मत मारी.
वह तो ‘गप-गप’ खीर खा गई, सारस भूखा लौट गया,
उसे मजा चखाने को वह, लगा सोचने उपाय नया.
नहीं समझ में आया कुछ भी, सोचा कुछ तो करना है,
जैसे को तैसा मिल जाए, फिर देखें क्या बनता है!
एक बार सारस ने उसको, खाने पे घर बुलवाया,
बढ़िया खिचड़ी बनवाकर वह, डाल सुराही में लाया.
वह तो पतली गर्दन वाला, खाता रहा मजे से खिचड़ी,
गर्दन फंसी लोमड़ी की वह, जी भर चीखी-चिल्लाई.
अब उसको लग गया पता था, सारस ने क्यों बुलवाया?
जैसी करनी वैसी भरनी, उसे हुआ तब पछतावा.
तौबा कर ली उसने ”किसको, कभी नहीं सताऊंगी मैं,
बड़े प्रेम से हिलमिल रहना, सबको सदा सिखाऊंगी मैं.”
लीला बहन , बाल गीत बहुत अच्छा लगा .बच्चे ऐसे गीत बहुत पसंद करते हैं .
प्रिय गुरमैल भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको बाल कथा गीत बहुत सुंदर लगा. हमेशा की तरह आपकी लाजवाब टिप्पणी ने इस ब्लॉग की गरिमा में चार चांद लगा दिये हैं. आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. सीख देने के लिए कभी-कभी टिट फॉर टैट की नीति भी अपनानी पड़ती है. इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
जैसे को तैसे की सीख मिलने से लोमड़ी की अक्ल ठिकाने आ गई और उसने सबके साथ बड़े प्रेम से हिलमिल रहने की प्रतिज्ञा कर ली.